बुधवार, 19 सितंबर 2012

कंक्रीट के वृक्ष

यहाँ वृक्ष हुआ करते थे
जो कभी
लहलहाते थे
चरमराते थे
उनके पत्तों का
आपस का घर्षण
मन को छू लेता था
उनकी डालों की कर्कश
कभी आंधी में
डराती थी मन को |
बारिश के मौसम की
खुशबू और ताज़गी
कुछ और बढ़ा देती थी
जीवन को ||

 

उन वृक्षों की पांत
अब नहीं मिलती
देखने तक को भी
लेकिन , हाँ !
वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे हवा
नहीं मिलती
नहीं मिलती
इनसे खुशबू
न कोई आनंद
लेकिन
निश्चित ही
ये वृक्ष
पैसे उगलते हैं
जिसके लिए
हर कोई
पागल बना फिरता है
मगर इतने पर भी
इन वृक्षों से मोह
नहीं हो पाता


कैसे हो ! आखिर
हमने इन्हें सीमेंट से
जो सींचा है |
भावनाएं कैसे समझेंगे
ये कंक्रीट के वृक्ष
हमारी भावनाओं का
घड़ा भी तो
इनके लिए रीता है ||

बुधवार, 20 जून 2012

धरती जो सबसे पावन ……

धरती जो सबसे पावन वो धरती हिंदुस्तान की |
लेते वीर जन्म जहाँ वो माटी हिंदुस्तान की ||


कितने हमले हुए यहाँ , खोने ना पाई इसकी शान
मात्रभूमि की रक्षा को यहाँ करता बच्चा बच्चा जां कुर्बान ||


मात्रभूमि की रक्षा को ही यहाँ नारी ने तलवार उठाई थी
करोड़ों लोग आ गए पीछे जब गाँधी ने आवाज़ लगाईं थी ||


मत भूल अशफाक की कुर्बानी को मत भूल भगत के जोश को
फिरंगियों को वापस भगाया , तू भूल गया क्या उस बोस को ? ||


आजाद सरीखे वीरों के दम पर ही अंग्रेजों ने जंग हारी थी
भूल गया क्या उस ऊधम को जिसने डायर को गोली मारी थी ||


इन सब वीरों को भारत की आज़ादी का अरमान था
लड़ा जो हिंद के लिए वो हर वीर महान था ||


उनका ही वंशज है तू , और है भारत वासी
लगता है जन्मभूमि है फिर से कुछ बलिदानों की प्यासी ||


भारत माँ की रक्षा को अपना शीश कटा ले तू
मात्रभूमि पर निछावर होकर कुछ पुण्य कमा ले तू ||

शुक्रवार, 11 मई 2012

अगर भ्रष्टाचार खत्म हो गया तो ?

मान के चलिए कि अन्ना हजारे जी के आन्दोलन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया और लोगों के दिमाग बदलने लग गए | लोगों ने रिश्वत लेना और देना बंद कर दिया और कमीशन से तौबा कर ली ……….| नेताओं और अधिकारियों के मन ने उनको धिक्कारना शुरू कर दिया | घर में रिश्वत के पैसे लाने पर बीवी और बच्चों ने धिक्कारना शुरू कर दिया | मतलब ये कि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों की आत्मा ने उन्हें कचोटना शुरू कर दिया , उनका जमीर जाग गया तो ……………? सोचिये कितना बड़ा नुक्सान हो जायेगा अगर ऐसा हो गया तो ? फिल्म वालों के लिए वैसे ही कहानी का अकाल पड़ा रहता है हर तीसरी फिल्म तो भ्रष्टाचार पर होती है , भ्रष्टाचार नहीं रहेगा तो फिर कहानी कैसे मिलेगी ? सोचिये उस बेचारे मुसद्दी का जिसने ऑफिस ऑफिस खेलते खेलते अपने बच्चों को पाला और उस को हीरो भी बना दिया | सुनते हैं अब वही मुसद्दी एक फिल्म ” मौसम” भी बना रहा है | आप ही बताइए अगर भ्रष्टाचार नाम का धंधा न रहा होता तो ये बेचारे कैसे जीवन यापन करते ? और अपना वो राम गोपाल वर्मा , जानते तो हैं न ? वो तो कहीं भुट्टा ही बेच रहा होता | फिर भी आप कहते हैं कि इस भ्रष्टाचार को ख़तम करें | काहे भाई ? काहे औरों के पेटों पर लात मार देना चाहते हैं | तनिक उनका भी तो सोचिये जो “कुछ” पाने के चक्कर में नेता जी के इधर उधर लगे रहते हैं ? भले ही दुनिया उन्हें चमचा कहे , मगर उन्हें भी तो अपना घर चलाना है कि नाही ? अगर नेता जी को कहीं से कमीशन या नजराना नहीं मिलेगा तो वो अपने चमचों को क्या देंगे ? अगर चमचों को चासनी नहीं मिलेगी तो वो फिर उधर क्यों मुहं मारने जायेंगे ? और जो वो मुहं मारने वहां नहीं जायेंगे तो नेता जी को पूछेगा कौन ? फिर कैसी राजनीति और काहे के लिए राजनीति ? बिना किसी फायदे के लिए कोई कुछ करता है क्या ? अब वो भगवान श्री कृष्ण तो हैं नहीं कि सोच लें ” कर्म किये जा फल कि इच्छा मत कर |”


इस भ्रष्टाचार के खेल से जाने कितनो के घर चलते हैं | टी.वी. की टी.आर.पी. से रिपोर्टर की तनख्वाह बढती है , अखबार के समाचारों से पत्रकारों का घर चलता है | कुछ नहीं तो कम से कम हम जैसे तुच्छ साहित्यकारों के बारे में ही सोचिये जिन्हें भ्रष्टाचार पर लिखने से कुछ संतुष्टि मिल जाती है |


तो भैया जैसा चल रहा है चलने देने में ही क्या बुराई है ? जब हमारे इतने गुनी और योग्य प्रधानमंत्री को इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती तो आप काहे खामखाँ परेशान होते हैं |

ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता , इस लेख को कुछ  और बड़ा करने और रोचक बनाने के लिए साथ में दे रहा हूँ !

इधर भी गधे हैं , उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूँ , गधे ही गधे हैं  ||
 

गधे हँस रहे हैं , आदमी रो रहा है
हिंदुस्तान में ये क्या हो रहा है  ?

ये दिल्ली ये पालम गधों के लिए है
ये संसार सालम गधों के लिए है  ||

मुझे माफ़ करना मैं भटका हुआ था
वो
ठर्रा था जो भीतर अटका हुआ था !!

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

रिक्त स्थान

गाँव से लेकर शहर तक
बस में , ट्रेन में
नौकरी और पढाई में
बस भीड़ भारी है |



छोटे – ऊंचे
काले -गोरे
हिन्दू -मुस्लिम
सब कतार में हैं
बस जगह मिल जाये ||



मैं भी चला आया
बढ़ चला उधर
जिधर
कतार चली |



कभी स्कूल में भरता था
या अखबार में देखता था
आज उसी रिक्त स्थान में
स्वयं को भरने
कतार में खड़ा हूँ मैं !!

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

ऐश्वर्या राय भी अभिषेक से पहले …………….

नाम सुना है क्या तुमने मेरा
नहीं सुना तो आज सुनो |
आँखें खोल के रक्खो
करके बंद अपने कान सुनो ||

मैं हूँ दुनिया का न . 1 डोन |
पहिचान सको तो पहिचानो, मैं हूँ कौन ||

मेरे नाम से बुझ जाती है लोगों की बत्ती |
कांपती है मुझसे इस शहर की हर एक हस्ती ||

शौक शान हैं मेरे अजब निराले
चले अगर मेरी मर्जी तो सेब उगा लूँ काले ||

हर काम का मेरा अलग एक स्टाइल है |
हर काम की मेरी अलग एक फाइल है ||

नहाऊं अगर मैं दिल्ली में तो कपडे सुखाऊँ लन्दन में |
मैं हूँ आजाद चमन का पंछी, नहीं हूँ किसी के बंधन में ||

अंडरवियर सिलता है यारो मेरा सिडनी में |
मैं चाहूँ तो सलमान को नचा दूं चड्डी और बिकनी में ||

मेरे इशारे से चलते हैं घंटे , मिनट्स और सेकंड |
इस दुनिया के सारे गुंडे लगते हैं मेरे फ्रेंड ||

ओसामा भी मेरे नाम से कांप जाता था |
मिल्खा सिंह भी मेरे साथ दौड़ते हुए हांफ जाता था ||

अमिताभ को एक्टिंग का सबक मैंने ही सिखलाया था |

( अमिताभ और मैं साथ पढ़े हैं लेकिन वो 64 के हो गए
मैं 32 का ही रह गया | बड़े लोग जल्दी बड़े हो जाते हैं )

जब वो रोते रोते एक दिन मेरे घर पे आया था ||

सच बताऊँ यारो मैंने खली बली को मारा था |
और सचिन तेंदुलकर का स्क्वेयर ड्राइव मैंने ही तो संवारा था ||

मनमोहन सिंह को राजनीति मैंने ही सिखलाई थी ( गलत किया ) |मायावती भी मुझसे आशीर्वाद लेने मेरे घर पे आई थी ||

सोनिया गाँधी भी पोलिटिक्स चलाने को लेती हैं मुझसे टिप्स |
इसके बदले मिलते हैं मुझको बस दो पैकेट अंकल चिप्स ||

ऐश्वर्या राय भी अभिषेक से पहले मेरे पास आई थी |( 50 % मामला तय हो गया था )

मगर हाय ! रे मेरी फूटी किस्मत उसी दिन मेरी सगाई थी ||

अभी तक नहीं पहिचान सके ? मैं बड़ा हैरान हूँ |
कुछ नहीं हूँ भाई, मैं तो बस ! एक अदना सा इंसान हूँ ||

(कृपया इस रचना के  साहित्य के मानदंडों पर खरा उतरने की उम्मीद ना करें ! पढ़ें , हंसें और मज़े करें ) धन्यवाद !

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

gandhis & bhuttos ( गांधीज एवं भुत्टोज़ ) : एक ही रंग

सुधि पाठक भली भांति जानते हैं कि कुछ दिन पहले पाकिस्तानी सदर आसिफ अली ज़रदारी , भारत के प्रधानमंत्री के बिन बुलाये मेहमान बने ! अब क्योंकि ज़रदारी को आदत है देशाटन करने की इसलिए वो जब चाहा मुंह उठाये चल देते हैं किसी भी देश की यात्रा करने के लिए ! कभी अमेरिका , कभी लन्दन और कभी दुबई ! सोचा होगा एक बार हिंदुस्तान भी हो ही आते हैं , सैर भी हो जाएगी और सम्बन्ध सुधारने की बेढंगी बात भी चल जाएगी ! जियारत तो एक बहाना था ! पाकिस्तान के सदर हैं तो जिस देश में जायेंगे , मेहमान नवाजी तो मिलेगी ही ! चकाचक मुर्गमुसल्लम मिलेगा, खुद को भी और बिलावल को भी ! तो खाली पड़े थे पाकिस्तान में , आदेश कर दिया पायलट को कि चलो आज हिंदुस्तान घूमने चलते हैं ! बिलावल को भी बुला लिया और बेटियों को भी ! पिकनिक पर जा रहे हैं ! उल्लू के पट्ठों के देश में ! जिसे हिंदुस्तान कहते हैं ! तो उठाया अपना प्राइवेट जेट , और निकल लिए हिंदुस्तान की सैर करने को ! ATF कितना भी महंगा हो , पाकिस्तान की जनता भूखी मरे तो मर जाये , अपने बाप का क्या जाता है ? बस आता ही आता है ! ये वोही ज़रदारी है जिसे 11 साल पाकिस्तान की जेल में रखा गया था भ्रष्टाचार के आरोप में ! अब वहाँ का राष्ट्रपति हैं ! भारत आये तो अतिथि देवो भवः का पालन करते हुए यहाँ हिंदुस्तान में स्वागत करने वालों की लाइन लग गई , रेड कारपेट बिछ गए ! वाह ! आखिर उनका यानि गांधियों का भाई जो आ रहा था ! अपना रिश्तेदार जो आ रहा था ! प्रधानमंत्री भी कहाँ हटने वाले थे , पेश कर दिया लंच ! और बुला लिया सोनिया और राहुल को लंच में ! भाई उनसे बड़ा देश भक्त इस हिंदुस्तान में और कोई है भला ? ना राहुल गाँधी जैसा नेता मिला है कभी ना इस वक्त है पूरे हिंदुस्तान में ? तो इन्हें ना बुलाते तो सरकार कैसे चलती , प्रधानमंत्री की कुर्सी ना सरक जाती नीचे से ! ये भी तो चल देते हैं मुंह उठाये , कहीं भी ! सोनिया मैडम अभी हाल ही में 1854 करोड़ खर्च करके आई हैं अमेरिका में इलाज़ के बहाने !

कुछ हाथ से उसके फिसल गया

वह पलक झपक कर निकल गया

फिर लाश बिछ गयी लाखों की

सब पलक झपक कर बदल गया

जब रिश्ते राख में बदल गए

इंसानों का दिल दहल गया

मैं पूछ पूछ कर हार गया

क्यों मेरा भारत बदल गया ..

लंच का समय :सब बैठे हैं खाने की टेबल पर

मनमोहन सिंह ज़रदारी से : (बहुत धीमी आवाज़ में ) ज़रदारी जी , वो विपक्ष वाले कह रहे हैं कि आप ने आतंकवादियों पर कोई कार्यवाही नहीं करी ?

ज़रदारी : ऐसा नहीं है , मनमोहन जी ! आप हमें सुबूत दीजिये हम कार्यवाही करेंगे !

मनमोहन सिंह : जी , बिलकुल ठीक ! ओके ! ओके मैडम ! राहुल बाबा ! मैंने अपना काम कर दिया ! अब तो कुर्सी नहीं जाएगी ?

राहुल : नहीं , नहीं ऐसी कोई बात नहीं मनमोहन जी ! आप बेफिक्र रहिये !

बिलावल राहुल से : कुछ बैंक बैलेंस बढ़ा ?

राहुल : कहाँ यार ! कहीं सरकार ही नहीं बनी !

सोनिया ज़रदारी से : आपका स्विस बैंक का क्या चल रहा है ?

ज़रदारी : ऐं ! क्या कहा आपने ! ( टांग चबाने में व्यस्त था तो सुनता कैसे )

सोनिया : मैंने आपसे पूछा कि स्विस बैंक का क्या चल रहा है ?

ज़रदारी : अरे कुछ नहीं , उन्होंने फिर कहा है कि कोई दिक्कत नहीं है !

सोनिया : हमारा पैसा फँस तो नहीं जायेगा ?

ज़रदारी : आप खामखाँ ही परेशां हो रही हो सोनिया जी , मैं इसीलिए तो हिंदुस्तान में आया हूँ ! आपको बताने के लिए कि कोई परेशानी नहीं है ! स्विस वालों से अपने और आपके पुराने रिश्ते हैं !

सोनिया : ओके ! ओके ! थैंक्स !

खाना पीना ख़त्म हो गया ! बाहर निकालने की तैयारी ! गैलरी में बिलावल राहुल से : और चचा ! हिंदुस्तान के वजीरे आज़म कब बन रहे हो ?

राहुल : मुश्किल सा लग रहा है यार ! बहुत सारे देश भक्त हो गए हैं इस देश में !

बिलावल : अरे हाँ ! नाम सुना था अन्ना हजारे , बाबा ! कौन हैं वो ?

सोनिया बीच में बोल गईं : अब चुप रहो तुम दोनों ! ज़रदारी जी बाहर क्या बोलना है , पता है ना आपको ?

ज़रदारी : फिकर नॉट ! मैं सब जानता हूँ ! कैसे लोगों को बेवक़ूफ़ बनाया जाता है ! ओके

सोनिया मनमोहन से : आपको बताने की जरुरत है क्या ?

मनमोहन सिंह : नो मैडम , सब रट लिया है ! कल से रट रहा हूँ !

बाहर आकर रटी रटाई बातें कह दी गईं और फिर अजमेर के लिए रवाना !

हवाई जहाज़ में बिलावल और ज़रदारी की बेटियां : अब्बा ! आप तो पूरे महारथी हो गए हो ! क्या जवाब दिया !
ज़रदारी : बेटा , इसीलिए तो मैंने हिंदुस्तान को उल्ले के पट्ठों का देश कहा था ! हम यहाँ आतंकवादी हमले भी करते हैं , चाइना से इन्हें डराते हैं , काश्मीर काश्मीर करते हैं ! लोगों को मारते हैं ! और फिर भी ये हमारे लिए रेड कारपेट बिछाते हैं ! है कि नहीं ! सीख लो बिलावल ! कुछ सीख लो ! जो रुतबा हमारा पाकिस्तान में है वो ही यहाँ के लोगों ने गांधियों को दे रखा है इसलिए राहुल चाचा से मिलते रहना !

मित्र लोगो यहाँ इन दोनो परिवारों की कुंडली प्रस्तुत कर रहा हूँ ! लेख कुछ बड़ा हो गया है , माफ़ करें !

रहत इन्दोरी साब के शब्दों में :

यह जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों ने ,
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई .

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

कैसा ये परिवर्तन आया ?

भारत में जर , जोरू और ज़मीन की लड़ाइयाँ बहुत ही प्रसिद्ध रही हैं | आज के दौर में भी लगभग हर रोज़ समाचार पत्रों में जमीन के बदले मिलने वाले मुआवज़े को लेकर घर घर टूट रहे हैं | अपना ही खून अपना दुश्मन हो चला है | लगता ही नहीं कि रिश्तों की कोई अहमियत बाकी रह गई है | भाई , भाई के खून का प्यासा हो चला है | बेटा अपने माँ और पिता को अपनी जमीन के बदले मिले मुआवज़े का एक हिस्सेदार समझकर उसे दुनिया से विदा कर देता है | ये कौन सी प्रगति है हिंदुस्तान की , ये कैसे संस्कार हैं जो अपने ही खून के प्यासे हुए जाते हैं ? इन्हीं सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक कविता कहता हूँ !

कैसा ये परिवर्तन आया
मानव , मानव से हुआ पराया |
दौलत पे यहाँ द्वन्द मचा
रिश्तों पे पड़ा दानव का साया ||


प्रेम का गीत भूल रहे हम
जीवन संगीत भूल रहे हम |
मानवता के हत्यारों ने
जाने कैसा जाल बिछाया ||



ओढ़ झूठ की मैली चादर
इंसान बना शैतान यहाँ |
सोचता होगा भगवान जरूर
मैंने कैसा ये संसार बनाया ||

कैसा ये परिवर्तन आया
मानव , मानव से हुआ पराया ||

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

दफ्तर के मच्छर ( व्यंग्य लेख )

बड़े बाबू ने दफ्तर आते ही ऑर्डर फैंका -बेमन सिंह एक कप चाय पिलाओ ! बेमन सिंह , जी सा’ब कहते हुए तुरंत बाहर निकल गया और थोड़ी देर के बाद चाय की केतली हाथ में थामे हाज़िर हुआ | जी सा’ब और कुछ लेंगे ? नहीं………कहते हुए जब बड़े सा’ब की नज़र फाइल पर से हटकर बेमन सिंह के चेहरे पर पड़ी तो जैसे वो चौंक गए और बोले -अरे बेमन ! ये तुम्हारा चेहरा लाल कैसे हो रहा है ? जी सा’ब , कल दफ्तर में मच्छर ने काट लिया था | क्या कह रहे हो बेमन ? हमारे दफ्तर में मच्छर ? इतना साफ़ सुथरा होते हुए भी हमारे दफ्तर में मच्छर कैसे आ गए ? बड़े बाबू ऐसे चिंतित हो रहे थे जैसे दफ्तर में मच्छर नहीं आतंकवादी घुस आये हों ? कैसे हैं मच्छर ? मोटे मोटे या पतले , मलेरिया वाले या डेंगू वाले , काले या ………..? बेमन तुम वर्मा जी को बुलाओ ! वर्मा जी हाज़िर हुए तो बड़े साब ने वर्मा जी को मच्छर पकड़ने के लिए नगर निगम को पत्र लिखने का आदेश दिया और वर्मा जी ने आदेश का पालन करते हुए तुरंत पत्र लिख दिया |

बेमन सिंह ! दफ्तर का सबसे पुराना कर्मचारी | आठ साल से यहीं था | वो बेचारा कभी मान सिंह हुआ करता था लेकिन कुछ वर्ष पूर्व आये एक अंग्रेज़ीदां अफसर ने उनका नाम ” मान सिंह” से ” मन सिंह ” कर दिया | क्योंकि ” मन सिंह ” ने कभी कोई काम ” मन से ” नहीं किया इसलिए किसी भाई ने उसका नाम ही बेमन सिंह रख दिया और यही नाम आजतक उनकी शोभा बढ़ा रहा है !

पत्र मिलने के लगभग एक सप्ताह के बाद नगर निगम के कर्मचारी अपने लाव लश्कर के साथ बड़े बाबू के दफ्तर पहुंचे | लेकिन वो मच्छरों को नहीं पकड़ पाए , तब ये मामला राज्य पुलिस को सौंप दिया गया मगर जब पुलिस भी नाकाम रही तब ये केस भारत सरकार के गृह मंत्रालय को ‘ रेफ़र ‘ कर दिया गया | गृह मंत्री ने तुरत- फुरत बयान जारी किया – ” हमें हमारे ख़ुफ़िया सूत्रों से पता चला है कि भारत में पांच -छः मच्छरों के आत्मघाती दस्ते ने प्रवेश किया है , हम हालात पर लगातार नज़र रखे हुए हैं | हमने पूरे देश में रेड अलर्ट जारी कर दिया है | ” और इस तरह से यह मामला गृह मंत्रालय की फाइलों में पहुँच गया |

और उधर एक दिन बेमन सिंह ने ‘ मन से ‘ काम करते हुए रद्दी की फाइलों से सभी मच्छरों को मार गिराया | गृह मंत्रालय में यह मामला अभी भी विचाराधीन है |

सोमवार, 26 मार्च 2012

ज़िन्दगी …………………एक पहेली

हमने पूछा ज़िन्दगी से
बता ए ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी क्या है ?
वो बोली मत पूछ बन्दिगी से

कि बता ए बन्दिगी ये बन्दिगी क्या है ||



ज़िन्दगी जवानी है ज़िन्दगी एक कहानी है |

रुक जाये तो बर्फ है बह जाये तो पानी है ||


किसी को सुकून दूं मैं ये मेरी भाषा नहीं है

ये मेरा आगाज़ है , मेरी पूर्ण परिभाषा नहीं है


किसी के लिए काँटा हूँ किसी के लिए फूल हूँ मैं |

किसी के सिर का ताज हूँ किसी के पाँव की धूल हूँ मैं ||


हमने कहा

अच्छा चलें ! ज़िन्दगी जी विदा दीजिये |

( हम ज़िन्दगी से मिलने गए हुए थे )

वो बोली ! कहाँ चले ?
पहले मेरी सहेली ‘ मौत ‘ से तो मिल लीजिये ||

हमने कहा आज जाना ज़िन्दगी क्या है ?
ज़िन्दगी तो एक पहेली है |
आप से तो सुन्दर आपकी सहेली है ||


 


गुरुवार, 22 मार्च 2012

फूलों की खुशबू लौट आई है………….

फूलों की खुशबू लौट आई है एक तेरे आने से |

हर ख़ुशी मेरे पास आई है एक तेरे आने से ||



रफ्ता रफ्ता बढ़ रहा था मैं मौत की ज़ानिब

मेरी जिंदगी लौट आई है एक तेरे आने से ||



तेरे बिना जैसे महक नहीं थी गुलशन में

हर कली मुस्कराई है एक तेरे आने से ||



तू गई तो चाँद की चांदनी भी गई

रात की चमक लौट आई है एक तेरे आने से ||



बात बिगड़े भी तो रिश्ते नहीं टूटा करते

सदा -ए -इश्क लौट आई है एक तेरे आने से ||



मैं तो बस एक तिफ्ल था ‘ योगी ‘ इस भरे ज़माने में
पूरी दुनियां मेरे कदमों में सिमट आई है एक तेरे आने से ||