शनिवार, 30 जुलाई 2016

Satopanth Yatra : Second day ( Laxmi Van to Chakrateerth)

लक्ष्मी वन से चक्रतीर्थ : दूसरा दिन


अगर आपको ये यात्रा वृतांत शुरू से पढ़ने का मन हो तो आप यहां क्लिक करिये, पहले ही पोस्ट से पढ़ पाएंगे !

लक्ष्मी वन पहुंच जाने के तुरंत बाद ही चाय पिला दी गज्जू भाई की टीम ने और शरीर कुछ आराम में आने लगा । चाय खत्म करके मैग्गी मिल गई । मजा आ गया । रोटी का जुगाड नहीं होगा चार पांच दिन । आटा लेकर नहीं आये हैं । अभी बमुश्किल शाम के 5 बजे हैं । पहले अमित तिवारी और संजीव त्यागी जी असल वाला लक्ष्मी वन देखने निकल गये । फिर मैं, संदीप भाई और विकास नारायण श्रीवास्तव निकल गये । अमित भाई और संजीव जी लग रहा था बहुत गहरी पर्सनल गुटर गूं  करने में व्यस्त हैं तो मैं उधर न जाकर दूसरी दिशा में उतर गया । जाट देवता उर्फ संदीप भाई मुझसे आगे उतरे लेकिन वो ज्यादा नीचे तक नहीं गये । आज 3500 मीटर की ऊंचाई पर भोजपत्र के पेड़ साक्षात देखकर मन प्रसन्न हो रहा था और मैं उनके उतने ही नजदीक चला जा रहा था लेकिन यकायक ध्यान आया,  बेटा योगी उतर तो जायेगा लेकिन वापस आने में दम निकल जायेगा ! और फिर वहीं बैठ गया । कुदरत की अपनी करामातें देखने के लिये । आज 13 जून है , सोमवार है लेकिन न कॉलेज जाना है,  न बीवी का डर है कि घर जल्दी पहुंचना है । 

पंछी बनूं उडता फिरूं मस्त गगन में .........आज मैं आजाद हूं दुनियां के चमन में .......! 

लौट चलते हैं अपने दड़बे में । दड़बा मतलब तम्बू में ।


इधर उधर की बात चल रही हैं । टैण्ट लगा दिये हैं और मैं सीखना चाहता हूं कि टैण्ट लगाते कैसे हैं । कुछ समझ आया कुछ नहीं आया । अंधेरा होने को है और एक एक करके सब अपने अपने टैण्ट में घुस जाने को हैं लेकिन इधर बीनू भाई बडे भाई की तरह जिममेदारी संभाल रहे हैं । असल में टैण्ट में सोने वाले ज्यादा हो रहे हैं और टैण्ट कम पड रहे हैं । लफडा ये है कि जाट देवता अपना एक लंबा चौडा तिरपाल लेकर आये हैं और वो उसे ही टैण्ट बनाकर सोने के चक्कर में हैं, बीनू भाई चाहते हैं कि उसे या तो बीनू, सुमित नौटियाल के टैण्ट के ऊपर डाल लिया जाये या उसे अंदर बिछा लिया जाये । मामला सुलट गया है । मेरे टैण्ट में मेरे अलावा विकास नारायण और सुशील जी सोयेंगे । दूसरे टैण्ट में अमित भाई और संजीव जी, तीसरे में बीनू भाई और कमल । एक और बचा , उसमें जाट देवता और सुमित नौटियाल सोयेंगे । 

आईये, आपको अपने टैण्ट में लेकर चलता हूं । विकास नारायण श्रीवास्तव पहले से ही वहां मौजूद है , सुशील जी अभी बाहर हैं । मैं टैण्ट में पहुंचा तो विकास बाबू सीधे लेटे पडे थे । मैंने कहा भाई थोड़ा करवट ले के लेट जा जगह बन जायेगी और अभी सुशील जी भी यहीं आने वाले हैं । बोला - मुझे करवट लेने से परेशानी होने लगती है और दिल की धडकन बढ जाती है । मैंने पूछा ऐसा तो मैंने कभी नहीं सुना कि करवट लेकर सोने से दिल की धडकन बढ जाती है ?  योगी भाई आपने मुझे होटल में नोटिस नहीं किया ? भाई मैं तुझे क्यों नोटिस करने लगा ? तू कोई वीआईपी है या कोई लडकी है जो तुझे नोटिस करता ? कि तू कैसे खाता है, कैसे सोता है । वो बंदा बिदक गया और ऐसा बिदका कि पूरे रास्ते ढंग से बात नहीं करी , हालांकि हम दोनों सोये एक ही टैण्ट में । हाँ सही में । वो भी चार दिन तक । 

मेरा मूड खराब हुआ तो मैं पास में ही लगे बीनू भाई के तंबू में जा घुसा ।वहां कमल और सुमित पहले से ही थे, चारों ताश खेलने लगे , वहां बीनू भाई ने नया गेम सिखाया " लद्दु (Laddu) " ! मस्त गेम है और हम चार दिन यही खेले । मस्त टाईम पास । 

 सुबह गर्मा गरम चाय से दिन की शुरूआत हुई । तंबू में ही चाय मिल गई । इससे और बेहतर की क्या उम्मीद कर सकते हैं हम 3500-3700 मीटर की ऊंचाई और किसी मानव बस्ती से 10-12 किलोमीटर की दूरी पर ? 

आज चक्रतीर्थ तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित है । ये दूरी करीब 10 किलोमीटर की है । पहाड़ों पर सुबह के शानदार नजारे दिख रहे हैं । उन पर लदी ताजा और झक सफेद बर्फ बार बार आभास दिला रही है कि तुम प्रकृति की गोद में हो मेरे बच्चे । ऐसा लग रहा है मानो कोई नवयौवना स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार कर अपने प्रियतम के इंतजार में बैठी हो । वसुधारा फॉल अब भी बेवकूफ बना रहा है । हम भले ही उसे धोखेबाज समझ रहे हों लेकिन उसका निरंतरता में, उसकी चाल में, उसके चरित्र में अब भी कोई बदलाव नहीं आया । यही तेरी खूबी है मेरे दोस्त । तुझे जब पिछले साल देखा था तब भी तू ऐसा ही था और आज भी वैसा ही । इंसान तो पल भर में बदल जाते हैं ।
लक्ष्मी वन से निकलते ही एक ठण्डे पानी का बहाव मिलता है, उसे पार कर लिया । अभी यहां से भागीरथी खड़क नाम का ग्लेशियर दिखाई दे रहा है । वास्तव में ये जगह बंधार कहलाती है जहां भागीरथी खड़क और बांगलुंग ग्लेशियर एक साथ मिलते हैं ! ​

रास्ता बडे बडे पत्थरों से भरा पडा है । कहीं कुछ साफ रास्ता मिल गया तो बढिया नहीं तो इन्हीं पत्थरों के ऊपर से निकलना होगा । इन बडे बडे पत्थरों को बडे बडे ट्रैकर बोल्डर कहते हैं । कुछ आगे यानि एक डेढ किलोमीटर दूर एक कोठरी जैसी गुफा मिली जिस पर पहले कभी दरवाजा भी रहा होगा, लेकिन अब सिर्फ लोहे की चौखट ही रह गई है । अमित भाई वो दूर दिख रहे हैं लेकिन कुछ ही मिनट में ऑखों से ओझल भी हो गये । उनसे ही कुछ पीछे सुमित नौटियाल भी है । विकास नारायण तो अमित भाई को अपना गुरू मान चुका था तो वो भी उनके पीछे पीछे चला गया । मैं, बीनू भाई और जाट देवता साथ ही हैं लेकिन इसी बीच कमल भाई भी सुमित के साथ ऊपर की तरफ निकल गये । संजीव जी और सुशील जी बीच में फंस गये किधर से जायें ! इतने में दो पॉर्टर भी आ पहुंचे और जब उन्हें पता चला कि हमारे कुछ लोग ऊपर वाले रास्ते से गये हैं तो पहले तो सबने जोर जोर से आवाज दी लेकिन जब आवाज का कोई जवाब नहीं आया तब एक आदमी उन सबको लेने ऊपर की तरफ दौडा । गडबड़ ये थी उस रास्ते में कि दूसरी तरफ अलका पुरी का बहुत ही खतरनाक क्षेत्र है जिसमें क्रेवास बहुत हैं और पिछले साल वहां ऐसे ही जाते समय किसी की मौत हो गई थी । पॉर्टरों का डरना भी सही था कि उनके ग्रुप के लोगों के साथ कोई अनहोनी हो जाती तो दाग उन पर भी आता , और हम सब तो परेशान थे ही । आखिर सब सुरक्षित दूसरे कोने पर दिखाई दिये तो सबकी जान में जान आई । 

​ये जगह ऐसी है कि हमारी तरफ तो एक चौड़ा सा मैदान है और दूसरी तरफ ग्लेशियरों और क्रेवासों से भरा पड़ा अलकापुरी का इलाका है जो बहुत खतरनाक है ! और इन दोनों के बीच में एक ऊँची धार है जिस पर चलकर कुछ लोग दूसरी तरफ निकल गए !

आगे चलते हैं तो फिर एक ऊंचाई पार करनी है ! रास्ता फिर से बड़े बड़े पत्थरों से भरा हुआ है , लेकिन जाना तो है ही और आज कल के मुकाबले ठीक चल रहा हूँ और हाँ , कमल भी बढ़िया चल रहा है ! आज भी हम दोनों साथ चल रहे हैं , हाँ बीच में थोड़ी देर बिछड़ भी गए थे ! देर आये दुरुस्त आये !

सामने पहाड़ों से निकलती बहुत सी धाराएं दिखाई देने लगी हैं , इसका मतलब ये कि हम सहस्त्रधारा पहुँचने वाले हैं ! यहां , महाभारत के प्रसंग के अनुसार अर्जुन ने अपने प्राण या कहें अपना शरीर छोड़ा था ! वो दूसरी बात है कि हम अपना शरीर छोड़ने के लिए बिलकुल भी इच्छुक नही हैं ! हा हा हा , छोटे छोटे दो बच्चे हैं यार अपने ! और एक बीवी भी है !

सहस्त्रधारा का जो मैदान है वहां इन पहाड़ से निकलने वाली धाराओं से एक नाला जैसा बन गया है जिसका पानी बहुत ठण्डा है ! सब उसके पास बैठे हैं और नहाने की हिम्मत जुटाने की कोशिश में हैं ! मैं भी थोड़ा चार्ज हुआ और नहाने के लिए कपडे उतार फैंके , लेकिन जैसे ही पानी में हाथ डाला , सारी हिम्मत और सारा जोश गधे के सींग की तरह गायब हो गया ! आखिर में बस संजीव त्यागी जी ही उस ठण्डे पानी में नहाये , जिससे ग्रुप की इज्जत बची रहे ! 

चक्रतीर्थ कुछ ही दूर रह गया है ! आज इस 10 किलोमीटर की दूरी में चक्रतीर्थ तक जाना है जो लगभग 4100 मीटर की ऊंचाई पर है ! यानि आज हम 600 मीटर की ऊंचाई चढ़ जाएंगे ! चक्रतीर्थ अभी 4 किलोमीटर और होगा और हमारे पोर्टरों ने मैग्गी बनाने का ठिकाना देख लिया है ! गुफा तो नही थी लेकिन एक बड़े पत्थर के पीछे ही बैठ के बना ली ! भूख लगी हो तो कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है ! मैं और कमल ही रह गए , हमारा इंतज़ार कर रहे हैं पोर्टर कि हम पहुंचे तो वो भी अपना टाल टमीला समेट के चल दें !

एक साथ पता नही कहाँ से 10 -15 पोर्टर चले आ रहे हैं ! बीनू भाई ने कुछ पूछा तो जवाब सुनकर बीनू भाई का चेहरा खिल गया ! असल में बीनू भाई को पता चला था कि पीछे एक बड़ा ग्रुप आ रहा है 30 -३५ लोगों का और उसमें 12 -15 लड़कियां भी हैं ! बीनू भाई ही क्यों , सबके चेहरे खिल गए कि आज कई दिन के बाद कुछ "हरियाली" नजर आने वाली है ! बीनू भाई सहित सबकी चाल कुछ मंदी पड़ गयी , हाँ अमित जी आगे जा चुके थे तो वो इस "प्रसाद " से वंचित रह जाने वाले थे ! सब धीरे धीरे चल रहे थे और इसका फायदा ये हुआ कि मैं और कमल भाई भी सबके साथ चल पाए ! लेकिन। ..... न बाबा आया , न घण्टा बजा ! इंतज़ार करते करते हम सब दोपहर के तीन बजे के आसपास चक्रतीर्थ पहुँच गए ! चक्रतीर्थ , एक खुला और चौड़ा मैदान है लेकिन हमने अपना टैण्ट उस मैदान के थोड़ा ऊपर लगाया ! उसका कारण ये था कि अगर बारिश हो गयी तो मैदान में पानी भर जाता और दूसरा कारण था कि वहां पहले से ही कुछ टैण्ट लगे हुए थे ! 


आज बहुत ज्यादा लिख दिया ! चक्रतीर्थ पहुँच ही गए हैं तो आगे की कहानी आगे की पोस्ट में :


टैण्ट लगाने की तैयारी



लक्ष्मी वन चलते हैं देखने


3500 -3700 मीटर की ऊंचाई पर एक वन मिल जाए तो आश्चर्य की बात होती है !!







भोजपत्र का वृक्ष



वसुधारा फॉल अब भी दिख रहा है

शाम उतर रही है , लेकिन आज खुले मैदान में

अगले दिन सुबह ! आज 14 जून 2016 की तारीख है







सतोपंथ का हाईवे ऐसा ही है !! बोल्डर से भरा हुआ




जैसे परियों का महल हो !


लेह लद्दाख नही , ये सतोपंथ के पहाड़ हैं

अलका पुरी !  ये क्षेत्र बहुत खतरनाक माना जाता है ! क्रेवास बहुत हैं


कुछ दिखा क्या ?

सहस्त्रधारा से आती छोटी छोटी धाराएं


सहस्त्रधारा पहुँच गए!  कहते हैं यहां अर्जुन ने  अपने प्राण त्याग दिए थे

सहस्त्रधारा से आती छोटी छोटी धाराएं! पानी बहुत ठंडा था

धार के दूसरी तरफ एक कुण्ड जिसे मैंने "योगी कुण्ड " नाम दिया ! लेकिन अगले साल तक शायद ही मिल पाए



लोग भी कहाँ कहाँ जाके फोटो लेते हैं !! सुशील जी हैं अपने

बालाकुन चोटी

सहस्त्रधारा

सहस्त्रधारा









शायद नीलकंठ पर्वत है !!



एक बार नहाने की हिम्मत की थी इस ठन्डे पानी में लेकिन पानी छूते ही हिम्मत जवाब दे गयी !!


आज दोपहर का लंच ! मेरा और कमल भाई का ! चाय नही पानी से ही सटक लेंगे !!

ये किसी बेचारे की रोजी रोटी टूटी पड़ी है !!

थोड़ा आगे जाकर फिर एक फोटो ली सहस्त्रधारा की





हुर्रे ! आ गया चक्रतीर्थ का खुला मैदान !


आ रहा यार मैं भी कमल भाई !!


यही चक्रतीर्थ हैं ! लक्ष्मी वन से चलकर यहीं अपना टैण्ट लगाते हैं सतोपंथ जाने वाले !





हमारा टेण्ट उधर आगे लगेगा , थोड़ा सा ! सीधे हाथ पर जो आगे ऊँचा सा पत्थर दिख रहा है न , उसके पास !
 दिखा  ? नहीं दिखा ? कल दिखा दूंगा अगली पोस्ट में



जय हो !! अब आज रेस्ट कर लें थक गए हैं !



                                                                                                                    फिर मिलते हैं