गुरुवार, 10 नवंबर 2016

First Time in Kumaun : Ghaziabad to Ranikhet

थोड़ा ये सोचिये कि आप सरकारी नौकरी की लाइन में लगे हो और जैसे ही आपके आगे लगे आदमी का नंबर आता है और वो सलेक्ट हो जाता है फिर आपका नंबर है , आपके अंदर की ख़ुशी चरम सीमा पर है , आपने जो सपने संजोये हुए हैं उनको हकीकत बनने में बस कुछ ही पल बचे हैं , लेकिन तभी सामने इंटरव्यू लेने वाला आदमी कह दे - हो गया भाई ! फुल हो गया , अब कोई जगह नही ! जाओ , जाओ सब ! क्या हाल होगा ? क्या गुजरेगी ? खैर इतना बड़ा तो मेरे साथ इस यात्रा में नही हुआ लेकिन हुआ जरूर !

करीब 20 दिन पहले जैसलमेर से चलकर काठगोदाम तक जाने वाली रानीखेत एक्सप्रेस में रिजर्वेशन कराया था ! विचार इस तरह का था कि एक नवम्बर की रात को गाज़ियाबाद से चलकर सुबह 5 या 5 ;30 बजे तक काठगोदाम पहुँच जाएंगे तो नींद भी मिल जायेगी और अगला दिन पूरा घूम लेंगे ! गाज़ियाबाद स्टेशन पर इस ट्रैन का टाइम रात को 11 :30 बजे का है ! मतलब 5 -6 घंटे की नींद मिल जाती काठगोदाम तक पहुँचते पहुँचते ! गाज़ियाबाद से काठगोदाम जाने के लिए दो ही ट्रैन हैं , एक सुबह और एक रात को ! एक नवम्बर को ही मेरा जापानी भाषा का फाइनल टेस्ट भी था जो 3 :30 से 5 :30 होना था और फिर दिल्ली से गाज़ियाबाद पहुँचने में भी समय लगता है तो ये सब सोचकर ही रात वाली ट्रेन का आरक्षण कराया था ! जब आरक्षण कराया था तब वेटिंग 56 और 57 थी लेकिन 31 अक्टूबर को ये 27 , 28 आ गयी तो उम्मीद होने लगी कि शायद कन्फर्म हो जाएगा ! एक नवम्बर को शाम 7 बजते बजते वेटिंग 9 और 10 हो गयी तो घर फ़ोन करके कह दिया -तैयारी करो ! चलेंगे ! बच्चे तुरंत तैयार होने लगे लेकिन 9 बजे के आसपास जब चेक किया तो चार्ट तैयार हो चूका था और हमारी वेटिंग ज्यूँ की त्युं 9 और 10 पर लटकी पड़ी थी ! एक मन आया कि जाना कैंसिल कर दें लेकिन बच्चों ने जिद करी तो फिर आख़िरकार लगभग साढ़े नौ बजे घर से निकल पड़े ! जल्दी ही ऑटो लेकर मोहन नगर पहुंचे तो बस सामान ही उतारा होगा कि जयपुर डिपो की राजस्थान की बिल्कुल खाली बस आकर रुकी , जैसे ही हमने पूछा - हल्द्वानी ? तुरंत दरवाज़ा खुला और रानीखेत की यात्रा शुरू हो गयी ! पहली कुमाऊं की यात्रा !

आज भाई दूज का दिन था लेकिन भीड़ का कोई नामोनिशान नही दिखाई दे रहा था ! मुरादाबाद जाकर बस में कुछ लोग आये और सीट भरने लगीं लेकिन हम अपनी अपनी सीटों पर सोये पड़े रहे , न किसी ने उठाया न हम उठे ! रामपुर में कुछ और लोग आये लेकिन हम यहां भी 'सुरक्षित ' रहे ! ज्यादातर भीड़भाड़ रुद्रपुर तक थी और रास्ता NH -24 पर एकदम मस्त ! रुद्रपुर पहुंचकर ड्राइवर -कंडक्टर ने चाय पी तो मैंने भी एक कप चाय खींच ली , बच्चे गहरी नींद में सोये रहे ! रुद्रपुर से निकले ही होंगे कि बस जितना आगे बढ़ती उतने ही ज्यादा हिचकोले लगने लगते ! बहुत ज्यादा गढ्ढे थे और इतनी बुरी रोड कि शायद इतनी बुरी रोड किसी गांव की भी नही होगी ! ये शायद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच फाँसी हुई है इसलिए इस रोड का इतना बुरा हाल हुआ पड़ा है ! रुद्रपुर से बिलासपुर तक लगता ही नही कि हम किसी रोड पर चल रहे हैं बल्कि सच कहूँ तो ऐसा लगता है कि मोबाइल के गेम की जो मंगल गृह का रास्ता है उस पर चल रहे हैं !

हल्द्वानी ! अभी तो रात के साढ़े तीन ही बजे हैं , बड़ी जल्दी ! उतर के खड़े हुए कि एक भाईसाब आये , कहाँ अल्मोड़ा ? न भाई , रानीखेत जाएंगे ! उसने किसी और को आवाज़ दी , उसने आते ही कहा चलिए बस वो लगी है ! बढ़िया ! लेकिन पहले फ्रेश हो लें ! पीछे की सीट मिली , कोई दिक्कत नही ! सब अपनी नींद पूरी कर चुके हैं , अब मैं सो लूंगा ! तीन -चार घण्टे तो लगेंगे ही रानीखेत तक , इतने में नींद का असर कम हो ही जायेगा ! लगभग सुबह 7 बजे रानीखेत पहुँच गए और जाते ही होटल लेकर सो गए ! बस में कितना भी सो लो , नींद पूरी नही होती जबकि ट्रेन में पैर फैलाकर सो जाने से शरीर को आराम मिल जाता है ! दोपहर 12 बजे के आसपास जगे , नहाना किसी को नही है ! सबको रात की ठण्ड ने कंपकपा दिया है ! हाथ मुंह चुपड़ के चल दिया बाहर ! पहले चौबटिया गार्डन चलेंगे !
चौबटिया गार्डन , रानीखेत से 10 -12 किलोमीटर दूर राजकीय उद्यान है जहां सेब आदि फलों के पेड़ हैं लेकिन हम जीप से पहले चौबटिया के जीप स्टैंड तक गए क्योंकि भूख भी लग रही थी ! वहां पेट पूजा करके पैदल पैदल ही पीछे की तरफ यानी रानीखेत की तरफ आर्मी के लोगों के घरों और गलियों को पार करते हुए चल दिए ! रास्ते में एक छोटा सा पार्क दिखा तो बच्चे वहां मस्ती मारने लगे ! यहां एक बात कहता चलूँ - मेरे दोनों बेटों को भारतीय सेना और सैनिक बहुत आकर्षित करते हैं और वो सैनिकों से बहुत प्रभावित रहते हैं ! जब हम चौबटिया के जीप स्टैंड से गार्डन की तरफ आ रहे थे तो , रानीखेत कैंटोनमेंट एरिया होने और कुमायूं रेजीमेंट का मुख्यालय होने की वजह से , बहुत से सैनिक वहां ऑन ड्यूटी भी थे और सड़क पर भी थे , उन्हें देखकर दोनों बच्चे "जय हिन्द " कहते हुए सल्यूट करते जा रहे थे ! दो तीन सैनिकों से हाथ भी मिलाया , जो उनके लिए अविश्मरणीय रहेगा ! जय हिन्द , जय हिन्द की सेना !!

चौबटिया गार्डन में लोग जरूर थे लेकिन न सेब के पेड़ों पर सेब थे और न पत्ते ! बस सूखे सूखे बिना पत्ते के पेड़ ! लेकिन सीढ़ीदार खेत जरूर थे जिनको देखने की मेरी वाइफ और बच्चों की तीव्र इच्छा थी ! खूब फोटो खिंचवाए यहां और एप्पल जैम भी ले लिया ! चाय बिना पिए कैसे काम चलता , ये तो आपको पता ही है ! है , न ? तो जी अगली पोस्ट कुछ दिन में लिखता हूँ तब तक आप भी चाय शाय पी आओ जी !

​चौबटिया में भी चर्च है ! लेकिन 1884 का है जब यहां अंग्रेज़ रहते होंगे




ये सूखे पेड़ तेरे  ... .... बागों में बहार नहीं है
मन भवन सीढ़ीदार खेत

इंतज़ार अच्छा होता है..........................कभी कभी


इतना गुस्से में क्यों है यार..............................पाई



 मिलते हैं जल्दी ही:



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