बुधवार, 13 सितंबर 2017

Nandikund-Ghiyavinayak Trek : Kachhni Dhaar to Pandav Sera ( Day 4)

इस ट्रैक को शुरू से पढ़ने और पूरा शेड्यूल ( Itinerary ) जानने के लिए इच्छुक हैं तो आप यहां क्लिक कर सकते हैं !!




काछनी धार से कुछ नीचे कल टैंट लगाया था ! आज और दिन की अपेक्षा आधा घण्टा पहले यानि 7 :30 बजे ट्रैक शुरू कर दिया ! आज हम 4200 मीटर से उतरकर 3700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पांडव सेरा या पांडुसेरा पहुंचेंगे ! ये दूरी लगभग 8 किलोमीटर की है और ऊंचाई आज करीब 500 मीटर कम हो जायेगी !

रास्ता बना हुआ है लेकिन बीच -बीच में बड़े -बड़े पत्थर रास्ता भुला देते हैं लेकिन अगर आपको थोड़ा सा अनुभव है ट्रैकिंग का तो आप देखेंगे कि बड़े -बड़े पत्थरों के ऊपर छोटे -छोटे दो -तीन पत्थर रख देते हैं और स्थानीय लोग जिससे रास्ते का पता चल जाता है ! आज का रास्ता यूँ तो उतरने वाला है लेकिन कहीं -कहीं बढ़िया चढ़ाई भी है और रास्ते पर निकली भेड़ -बकरियों ने रास्ते को और भी फिसलन वाला बना दिया है ! बारिश सुबह से ही चालू है तो मिटटी के कच्चे रास्तों की क्या हालत होगी , आप भलीभांति सोच सकते हैं ! मैंने भी आज पोंचू सुबह सात बजे चलने से पहले पहना और दोपहर तीन बजे उतारा , वो भी तब जब अपने अगले "डेस्टिनेशन " पर पहुँच गया ! पूरे पैसे वसूल कर लिए पोंचू के :)



रास्ते में लंतूरी खरक , पुनार बुग्याल और द्वारी गाड़ जैसी जगहें आती रहीं ! एक पोर्टर ने द्वारी गाड़ में बताया कि सर आईडिया के सिग्नल आ रहे हैं , मैंने एक मिनट उसी के फ़ोन से घर बात कर ली ! मेरा तो वोडाफोन का नंबर है जो रांसी में भी नहीं मिला तो यहां की तो बात ही क्या है !! वैसे इधर BSNL का नंबर मद्महेश्वर और काछनी तक भी मिल जाता है !! रास्ते में आपको बुरांश का एक जंगल मिलेगा लेकिन जून के महीने में बुरांश के फूल सूख चुके होते हैं तो इस बार केवल बुरांश के पेड़ देखकर ही काम चलाते हैं , फूल कभी और , कहीं और मौका मिलेगा तब देख लेंगे !!

द्वारी गाड़ एक ऊँची सी जगह है जिससे करीब 1 किलोमीटर आगे जाने पर बहुत तेज धार वाला झरना गिरता है ! बहुत संभल संभलकर पार किया फिर भी जूतों में पानी घुस गया और आगे पूरे रास्ते गीले जूते पहनने पड़े ! गीले जूते पैरों को सुन्न तो करते हैं लेकिन जब इनमें पानी भर जाता है तब इनमें से जो आवाज़ आती है , वो सुनसान जगह किसी संगीत से कम नहीं होती - छपाक , छप , छपाक छप !!

मैं कहीं ऊँची सी जगह पर बैठ गया , बैठा क्या सो गया ! यार एक आदमी लगातार चल रहा है थक गया होगा तो झपकी तो लेगा ही ? लेकिन जब तक आँख खुली थी तब तक आगे जाने पॉर्टरों को दूर जाते हुए देखता रहा कि कैसे और किधर जा रहे हैं ! मुख्य रास्ते से हटकर जाते हुए देखा था लेकिन फिर पता नहीं चला कि किधर को गए , नींद तेज आ रही थी तो सो गया ! जगा कब , जब मुंह पर बारिश की बूंदों ने डिस्टर्ब किया :) ! इधर -उधर देखा , काले काले बादल , डरावने लग रहे थे ! मुझे बारिश से ज्यादा बादलों से घबराहट होती है और मजे की बात है कि मेरे बड़े भाई को आंधी से डर लगता है , वो बचपन में आंधी देखते ही घर में घुसने भागता था :) घडी पर नजर मारी , अरे यार ! एक घण्टा हो गया सोते सोते !! खरगोश और कछुआ , दोनों के गुण आ गए हैं मेरे में ! चलता भी धीरे धीरे हूँ और मौका मिलते ही सो भी लेता हूँ !! अब अपना बोरिया -बिस्तर उठाकर तेज तेज चलने लगा और वहां तक पहुँच गया जहां तक मैंने पॉर्टरों को जाते हुए देखा था !! लेकिन अब दिक्कत आने लगी ! मुझे इतना तो पता था कि मैं पांडव सेरा के आसपास पहुँच गया हूँ लेकिन कोई भी साथी दिखाई नहीं दे रहा था और ऊपर से बारिश अपनी पूरी ताकत से पड़ रही थी , जैसे बस आज ही इसका पहला या अंतिम दिन है !! सांय सांय करते हुए बादल मेरे डर को और बढ़ा दे रहे थे , ऐसे में कुछ सहायता मिली साथियों के पद चिन्हों से ! असल में पांडव सेरा से पहले बहुत बड़ी बड़ी खरपतवार है , तो ये लोग उसमें से होकर गए होंगे तो जिस रास्ते से ये गए होंगे , उस रास्ते पर वो टूटी हुई सी हो गई थी ! कुछ दूर जाकर ये निशानी भी ख़त्म हो गई और मैं इनका नाम ले -लेकर आवाज़ लगाने लगा ! कहीं कुछ नहीं पता चला , तो मैं बारिश में ही थोड़ी देर खड़े होकर इधर उधर नजर मारने लगा ,ध्यान से जगह का मुआयना करने लगा ! मुझे एक जगह धुंआ निकलता हुआ दिखाई दिया और मुझमें हिम्मत आ गई ! मैं ये सोचकर आगे बढ़ने लगा कि ये शायद किसी भेड़ -बकरी चराने वाले का ठिकाना होगा और रात उनके साथ गुजार लूंगा ! लेकिन ये सब अपने ही साथी थे जो गुफा में सूप तैयार कर रहे थे !! बारिश में गरमा गरम सूप मिल जाए तो खून तेजी से दौड़ने लगता है !! मुश्किल से आये ....... पर दुरुस्त आये !!


पांडव सेरा : (Pandav Sera)
पांडव सेरा का शाब्दिक अर्थ होता है पांडवों की जमीन ! आप कभी इधर जाएँ तो देखेंगे कि ये एक बहुत बड़ा मैदान है , या कहें खेत है जहां पांडव खेती करते थे ! खेती लायक ही जमीन है और शायद अब कुछ लोग करते भी होंगे ! कुछ पालक सा दिखाई तो दे रहा था , लेकिन वास्तव में क्या था , मुझे नहीं मालूम ! ये जगह खेती योग्य इसलिए भी है क्यूंकि पानी पास में ही है , नंदीकुंड से निकलने वाली मधुगंगा नदी में पानी हमेशा बहता रहता है ! टैंट लगाने के लिए बहुत जगह है लेकिन जून में हमें साफ़ सुथरी जगह नहीं मिली , इसलिए जो वनस्पति वहां उगी हुई थी उसको ही तोड़ -मरोड़कर जगह बना ली !! खाना बनाने के लिए गुफा मौजूद है !!

तीन -साढ़े तीन बजे झक्कास धूप निकल आई और ये धूप हमारे लिए ऐसी ही थी जैसे वेंटीलेटर पर पड़े मरीज को मुफ्त की ऑक्सीजन मिल जाए , हालाँकि भारत में ऑक्सीजन की कमी से कई सारे परिवार अपने नौनहालों को , अपने चिरागों को खो देते हैं !! यही देश है मेरा !! सारे कपडे , पोंचू , बैग सब सुखा लिए !! कुछ ने तो अपने अंडरवेअर और बनियान तक को धूप दिखा ली :) ये जो जगह है , जहां बड़ी बड़ी वनस्पति उगी हुई है और जहां गुफा है वो वास्तव में खेत्रपाल कहलाती है , हमारे गूगल और मित्र अमित तिवारी जी ने बताया पढ़ने के बाद ! पाण्डवसेरा यहां से शुरू होता है और जहां आगे नंदीकुंड की चढ़ाई शुरू होती है वहां तक की जगह को पाण्डवसेरा कहते हैं ! एक और मित्र अनुराग पंत जी बताते हैं कि खेत्रपाल स्थानीय पहाड़ी देवता को कहते हैं जो उस जगह की रक्षा करते हैं ! आप इन दुर्गम पहाड़ों में जो छोटे छोटे मंदिर देखते हैं वो इन स्थानीय देवताओं को ही समर्पित हैं ! और एक बात कहते हैं पंत जी , कि हमने जो पालक जैसी वनस्पति देखी वो पालक ही है लेकिन वो जंगली पालक है जिसकी आप सब्जी नहीं बना सकते !! धन्यवाद अनुराग पंत जी !!

बहुत ही प्यारी और खूबसूरत जगह है पांडव सेरा ! बहुत सारे लोग यहां नहीं रुकते और सीधा काछनी धार से नंदीकुंड निकल जाते हैं लेकिन वो लोग शायद इस खूबसूरती को नहीं देख पाते ! अगर आप कभी प्लान करते हैं नंदीकुंड ट्रैक को तो इस जगह पर स्टे जरूर रखियेगा !! हाथ -पैर खुल जाएंगे !! 
तो आज बस इतना ही , कल अपने अगले डेस्टिनेशन "नंदीकुंड " चलेंगे !! 

रास्ते के नज़ारे !!
















इसे पार करते हुए जूतों में पानी भर गया और फिर म्यूजिक बजने लगा छप्पाक छप ......छपाक छप :)


बुरांश ही है न ?






पहुँच गए पांडव सेरा



पांडव सेरा में एक छोटा सा मंदिर जैसा है जिसमें पुराने जमाने के बर्तन और घंटियां रखी हैं







ये बीच में से फटी हुई चट्टान देखकर समझ लेना -पांडव सेरा आ गया





     ट्रैकिंग अभी जारी रहेगी:












6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

खूबसूरत वादियां

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

इतनी सुनसन जगह पर अकेले मुझे तो डर के मारे धिग्गी बन जाती।

नवीन जोंटी सजवाण ने कहा…

बहुत सुन्दर.... आनन्द आ गया.....

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत धन्यवाद् आपका नंदिनी जी 

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत धन्यवाद् आपका बुआ।  आपका लगातार समर्थन , ऊर्जा देता है।  आते रहिएगा 

Yogi Saraswat ने कहा…

बहुत धन्यवाद् आपका नवीन भाई जी।  आपको पढ़ने में जो समस्या आई उसके लिए क्षमा चाहता हूँ।  गूगल ने बहुत सारी सेटिंग बदल डाली हैं जिससे दिक्कत आ रही है