मंगलवार, 21 नवंबर 2017

Chasing the footprints of Bhagwan Rama : Chitrakoot (Part-1)

 जानकी कुण्ड & स्फ़टिक शिला 

मौसम की Extreme Conditions में घूमने का स्वाद शायद कुछ और बढ़ जाता है मेरे लिए , या ये कहूं कि कुछ और ज्यादा मौका मिल जाता है घूमने का ! जून की सर्दी में मद्महेश्वर - नंदीकुंड का बेहतरीन ट्रैक किया था और उससे पहले अप्रैल की जबरदस्त गर्मी में लखनऊ और भगवान श्रीराम की पावन धरती चित्रकूट के दर्शन किये। जून में ठण्ड !! जी , नंदीकुंड में जून में भी उतनी ठण्ड तो रही ही होगी जितनी दिल्ली में जनवरी में पड़ती है या शायद उससे भी दो -चार डिग्री और कम , इसीलिए लिखा जून की ठण्ड !! और अप्रैल ? 15 अप्रैल 2017 का दिन था वो जब सुबह आठ बजकर 10 मिनट हुआ था और एक लड़का चित्रकूट - कर्वी रेलवे स्टेशन के सामने चाय -नाश्ता खत्म करके आगे कहीं जाने का इंतज़ार कर रहा था , पसीने की बूंदें माथे पर से लुढ़कती हुई गालों तक आतीं और चुपचाप नीचे सरकती हुई गर्दन पर से होते हुए शरीर को भिगो देती !! अभी आधा घंटा पहले ही तो नहाकर निकला था वो होटल से और Deo भी मारा था 😀 लेकिन आज जैसे चित्रकूट की पावन धरती उसके stamina का "Endurance Test " लेना चाहती थी। लड़का जाना -पहिचाना सा चेहरा था , आप जानते हैं उसे भलीभांति 😀। मोबाइल फ़ोन अभी 42 डिग्री तापमान बता रहा था और अभी तो दिन ढंग से निकला भी नहीं था , मुंह हाथ धोकर बाहर निकले सूरज ने अपना काम चालू कर दिया था , अभी ये हाल है तो दोपहर में क्या होगा 😫 ?? लेकिन 

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
भगवान श्री राम और तुलसीदास जी की पुण्य धरा पर तुलसीदास जी का ही ये दोहा कितना सटीक लग रहा था उस दिन और उस समय। 


अभी जानकी कुण्ड के लिए ऑटो मिल गई है और जब तक वहां पहुंचूंगा आपको यहां आने तक की कहानी सुनाता चलता हूँ। 13 अप्रैल की रात को निकला हूँ गाज़ियाबाद से लखनऊ के लिए , लखनऊ मेल से लेकिन लखनऊ पहुँचते ही होटल लिया और हल्का -फुल्का नाश्ता करके सो गया। सोया तो ऐसा सोया जैसे आज के अलावा और कभी सोना ही नहीं है :) . दोपहर डेढ़ बजे आँख खुली तो फ़ोन चेक किया , हमारे ब्लॉगर मित्र मुकेश पांडेय जी का मैसेज था उनकी ट्रेन के लखनऊ पहुँचने के टाइम से समबन्धित। असल में ये हमारी और मान्यवर पांडेय जी की पहली मुलाकात होने वाली थी , आप लोगों में से अधिकांश मुकेश पांडेय जी को जानते होंगे , बेहतरीन ब्लॉगर हैं और ओरछा में रहते हैं। मध्य प्रदेश सरकार में आबकारी निरीक्षक हैं। तो जी उनसे मिलने के लिए स्टेशन भागा। वो अपने पूरे परिवार के साथ बिहार से वैष्णो देवी दर्शन करने गए थे और अब वापस लौट रहे थे। स्टेशन पर ही उनकी माता जी -पिताजी और भाइयों से मुलाकात हुई। पांडेय जी और उनकी धर्मपत्नी लखनऊ ही उतर गए - उन्हें झाँसी जाना था वापस अपनी नौकरी पर , तो खूब समय मिल गया बतियाने के लिए। हालाँकि तब से अब तक हम दोनों ही एक बड़े हादसे से ग्रसित हो चुके हैं। पांडेय जी के भी और मेरे भी पिता इस दुनिया से विदा हो गए 😥 !! मैं जब पांडेय जी के पिता जी से मिला था , वो एकदम हष्ट -पुष्ट और स्वस्थ थे लेकिन एक हादसे की वजह से जीवन का अंत हो गया ! दुखद खबर थी ये मेरे लिए भी ! अभी वो शायद 60 वर्ष के भी नहीं थे , हाँ मेरे पिता श्री 77 वर्ष के थे और प्राकृतिक मौत से वो दुनियां से विदा हो गए।

उधर लखनऊ से पांडेय जी परिवार को विदा किया और उधर मैं निकल चला चित्रकूट के लिए। मुझे लखनऊ में 16 अप्रैल को होना जरुरी था लेकिन अभी मेरे पास 15 अप्रैल का एक पूरा दिन बचा था तो उसका utilize चित्रकूट में करते हैं !! निकल चले बिना रिजर्वेशन के , लेकिन रिजर्वेशन वाले ही कोच में। TTE आएगा तो पेनल्टी भर देंगे लेकिन न TTE आया न टिकट चेक हुआ । सामान होटल में ही छोड़कर और कुछ जरुरी चीजें लेकर चित्रकूट की पावन धरती पर पहली बार जाने का उत्साह मन में हिलोरें मार रहा था। सुबह दो या ढाई बजे चित्रकूट -कर्वी स्टेशन उतरा तो नींद बहुत तेज आ रही थी और गर्मी भी बहुत थी।

एक होटल में कमरा पूछा कितने का है ?

500 रुपया !!

मैं चल दिया !!

कितना दोगे ?

मैंने कहा- 100 रूपये ! मुझे बस 4 घण्टे सोना है और सुबह नहाना है !!

ठीक है तो 400 दे देना !!

नहीं भाई ! 100 से ज्यादा नहीं !! मैं कहीं और देख लेता हूं !!

साढ़े तीन सौ से कम नहीं मिल पायेगा !!

ठीक है !! डेढ़ सौ दे दूंगा , और ज्यादा नहीं

ठीक है , लेकिन 20 रूपये मुझे अलग से दे देना सुबह बढ़िया चाय पिलाऊंगा !!

हो गया काम !! सुबह चाय भी पिला देना और जगा भी देना , सात बजे !! ठीक है !! ठीक है सर

लो जी आ गए जानकी कुण्ड ! जानकी कुण्ड , वो जगह है जहां ये माना जाता है कि भगवान श्री राम के वनवास के समय माता सीता यहां स्नान करती थीं। मंदाकिनी नदी के किनारे कुछ पैरों के निशान दिखाई देते हैं और ऐसा माना जाता है कि माता सीता के पैरों के निशान हैं।

चित्रकूट का मतलब है " Hill of Many Wonders " और मजेदार बात ये है कि यह एक ऐसी जगह है जो उत्तर प्रदेश में भी आती है और मध्य प्रदेश में भी। उत्तर प्रदेश का जो जिला मुख्यालय कर्वी में है और मध्य प्रदेश का जो हिस्सा है वो सतना जिले में आता है। ये तो इसका भौगौलिक मामला हुआ और अब आ जाते हैं इसके धार्मिक महत्व पर। भगवान श्री राम ने अपने 14 वर्षों के वनवास में कुछ समय यहां सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ गुजारा था। यही वो पावन भूमि है जहां अत्रि मुनि , सती अनुसुइया , दत्तात्रेय , महर्षि मार्कण्डेश्वर , महर्षि वाल्मीकि ने तपस्या की। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था तब सभी देवी -देवता चित्रकूट की पावन धरती पर उपस्थित हुए थे। महर्षि वाल्मीकि ने अपनी लिखी रामायण में चित्रकूट को महान संतों की भूमि बताते हुए इसे बंदरों -भालुओं से भरी सुन्दर भूमि कहा है। और यही पावन भूमि आज भी चित्रकूट धाम के नाम से जानी जाती है। महर्षि वाल्मीकि ने प्रथम बार चित्रकूट का वर्णन किया है जबकि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस और कवितावली तथा विनय पत्रिका में भी इसका वर्णन किया है। अब जब इतनी पवित्र और ऐतिहासिक धरती पर हैं तो ये जान लेना भी जरुरी हो जाता है कि यहां घूमने लायक क्या क्या है ? कहाँ कहाँ जा सकते हैं ? देखते हैं :
  • जानकी कुण्ड
  • स्फ़टिक शिला
  • सती अनुसुइया आश्रम
  • राम घाट
  • स्फ़टिक शिला
  • गुप्त गोदावरी की गुफाएं
  • हनुमान धारा
  • भरत कूप
  • भरत मिलाप
  • कामदगिरी
  • मरफा
जानकी कुण्ड से कुछ किलोमीटर आगे ही स्फटिक शिला है। ये जगह रोड से कुछ हटकर है , शायद दो किलोमीटर दूर होगी रोड से तो शेयर्ड टैम्पो / ऑटो नहीं मिल पाते ! हाँ कभी कभार कोई लिफ्ट दे दे तो अलग बात है नहीं तो पांवों को कष्ट देना ही पड़ेगा। रास्ते के दोनों तरफ बहुत से वृक्ष हैं तो गर्मी का एहसास नहीं होता पैदल चलते हुए भी। अपने साथ में पानी की बोतल लेना बिल्कुल मत भूलिए। स्फटिक शिला एक पत्थर है जिस पर भगवान राम के पैर का निशान बना है ।

स्फ़टिक शिला के आसपास कुछ मंदिर भी हैं , बहुत सुन्दर तो नहीं हैं लेकिन पुराने हैं तो देखने का मन करता ही है। अच्छी बात लगी कि आसपास ही गाय और बंदरों को खिलाने के लिए उनका भी प्रसाद बिक रहा था , और बेचने वाले भी प्रसन्न लग रहे थे। यहां मुझे अपने यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का एक Statement याद आता है कि Tourism एक ऐसी Industry है जो गरीब से लेकर अमीर तक और चाय वाले से लेकर फाइव स्टार होटल वाले तक को कमाने का अवसर प्रदान करती है। 

स्फ़टिक शिला मंदाकिनी नदी के किनारे पर ही है और वहां एक पंडित जी राम जी के पैर को लोगों को दिखा भी रहे थे , कुछ ज्ञान भी दे रहे थे और बदले में दक्षिणा भी ग्रहण कर रहे थे। 40 से 50 लोग , शायद सब बंगाली थे , अगर एक ने 10 रूपये भी दिए तो बन गए 500 रूपये। बढ़िया है !! ये तो चलो ठीक है लेकिन नदी में सिक्के भी फेंक रहे थे कुछ लोग , उसका मतलब समझ नहीं आया। मुझे न पंडित जी को दक्षिणा देनी थी और न ज्ञान प्राप्त करना था तो चले आये और जैसे ही चले एक टैम्पो पीछे से आता हुआ दखाई दिया और लटक गए रोड तक , केवल पांच रूपये में !! गर्मी है तो कोल्ड ड्रिंक तो बनती है और जब कोल्ड ड्रिंक की बात चली तो मरफा की भी बात चलने लगी जो यहाँ से दूर था और अपने ही Vehicle या फिर किराए के व्हीकल से ही जाना संभव था , शेयर्ड टैम्पो /ऑटो नहीं जाते। मरफा में कोई फॉल है ! कोल्ड ड्रिंक बेच रहे लड़के को तैयार किया कि वो 300 रूपये में अपनी बाईक से लेकर जाएगा और यहीं छोड़ देगा , लेकिन जैसे ही उसने अपनी माँ को बताया , उसने मना कर दिया और मरफा जाना कैंसिल हो गया। अब आगे सती अनुसुइया आश्रम चलेंगे......


लखनऊ​ रेलवे स्टेशन के बाहर

पहुँच गए चित्रकूट धाम

जानकी कुण्ड , चित्रकूट
जानकी कुण्ड , चित्रकूट
जानकी कुण्ड , चित्रकूट
जानकी कुण्ड , चित्रकूट




स्फ़टिक शिला के सामने का मंदिर
ये भगवान राम का पैर माना जाता है


स्वाद (Taste ) बदल गया:)











आगे चलेंगे अभी:

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

Chor Minar : Delhi

जून 2017 में नंदीकुंड ट्रैकिंग की पोस्ट लिखने में इतना व्यस्त हो गया कि मई 2017 में दिल्ली की एक अनजानी सी जगह से आपको परिचित ही नहीं करा पाया। असल में उस दिन मई के पहले सप्ताह का कोई दिन था और मैं आई. आई. टी. दिल्ली के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष ( H.O.D ) से मिलने गया था , मुलाकात आधा घंटे में ही खत्म हो गई तो बहुत समय बच गया आसपास की जगह देखने को। सबसे पहले जगह मिली "चोर मीनार ( 'Tower of Thieves') " ! भूल से चार मीनार मत पढ़ लेना , ये चोर मीनार ही है जो दिल्ली के हौज़ ख़ास में है। ज्यादा बेहतर लोकेशन नहीं मालूम लेकिन इतना पता है कि इसका रास्ता आई.आई.टी के बराबर से जाता है और फिर रवांडा देश के हाई कमिशन के दफ्तर के बिल्कुल अपोज़िट से एक और रास्ता जाता है। ये शायद अरबिंदो मार्ग है।

चोर मीनार ( Tower of Thieves):
चोर मीनार , 13 वीं शताब्दी में अलाउद्दीन ख़िलजी के समय में बनाई गई थी। कहा जाता है कि इस मीनार को चोरों को सजा देने और उनके सर काटकर यहां लगाने के लिए बनाया गया था , बोले तो शोकेस , जहां चोरों के सिर डिस्प्ले ( Display ) किये जाते थे जिससे और किसी की चोरी की हिम्मत न हो। इस मीनार की सबसे बड़ी खासियत इसमें बने 225 होल (Holes)  हैं , और ऐसा माना जाता है कि चोरों के सिर कलम करके इन छेदों में "सजा " दिया जाता था। इन छेदों में बड़े -नामी चोरों का सिर लटकाया जाता था जबकि छोटे -मोटे , उठाईगीरा टाइप के चोरों के सिर मीनार के बाहर पिरामिड (Pyramid ) की तरह बने ढ़ेर में फेंक दिए जाते थे।

अलाउद्दीन खिलज़ी की निर्ममता के किस्से तो वैसे ही बहुत मशहूर हैं , ये मीनार उसके 'कर्मों ' को दिखाती है और प्रमाणित करती है कि कितना भयानक मंजर रहता होगा जब इस मीनार के चारों तरफ , 225 इंसानी सिर बाहर निकलते होंगे , ओह !

हालाँकि कुछ इतिहासकार एक अलग कहानी बताते हैं , वो कहते हैं कि यहां अलाउद्दीन खिलज़ी ने उन मंगोल लोगों के सिर कलम कर दिए थे जो आज के मंगोलपुरी में रहने वाले अपने भाइयों -मित्रों से सम्बन्ध रखना चाहते थे। उनके सिर कलम करके यहां लटका दिए गए थे। वैसे पहली कहानी इसके नाम के साथ ज्यादा सटीक बैठती है। चोर मीनार के ही पास एक ईदगाह दिखाई दिया , क्या है ? क्यों है ? नहीं मालूम !! बस फोटो देखते जाओ जी ! चलो जी यहां तो हो गया , अब थोड़ा आगे चलते हैं और एक और अनजानी सी जगह देखते हैं :
















दादी -पोती  का मक़बरा ( Tomb of Grandmother & Grand daughter ):
ये जगह है "दादी -पोती " का मक़बरा , जो हौज़ ख़ास में जैसे ही घुसते हैं , सीधे हाथ पर हैं।  यहां दो मक़बरे हैं एक छोटा एक थोड़ा बड़ा।  वैसे बहुत ज्यादा अंतर नहीं है दोनों में लेकिन दोनों अलग -अलग हैं।  यहां किसकी कब्र है , किसने बनवाया , कुछ नहीं मालुम।  न मुझे मालूम न इतिहासकारों को।  छोटा वाला मक़बरा पोती का है जिसकी दीवारें कुछ ढलान लिए हुए हैं और इसकी छत कुछ विशेष प्रकार की है।  इसका गुम्बद 11.8 मीटर X 11.8 मीटर के साइज का है और ऐसा माना जाता है कि इसे तुग़लक़ के शासन के दौरान (1321 -1414 AD ) बनाया गया था। जबकि दूसरा वाला जो मक़बरा है वो दादी का मक़बरा कहा जाता है , इसके गुम्बद का साइज 15.86 मीटर X 15. 86 मीटर है और कहा जाता है कि इसे लोदी वंश के शासन काल ( 1451 -1526 AD ) में बनाया गया था।  कोई -कोई इतिहासकार इन दोनों जुड़वां गुंबदों को बीबी -बांदी का मक़बरा (  Mistress-Maid tombs) भी कहते हैं।  दादी का मक़बरा , पोती के मक़बरे की तुलना में ज्यादा बेहतर नजर आता है।  जहां पोती के मकबरे के अंदर की छत एकदम सपाट है वहीँ दादी के मक़बरे की अंदर की छत पर अरबी -फ़ारसी में कुछ लिखा हुआ है और दादी के मक़बरे में छह cenotaphs हैं तथा पोती के में तीन ही cenotaphs हैं।  अगर मौका मिले तो रात में देखिएगा से जब इस पर लाइट पड़ती है , और भी खूबसूरत दिखेगा।






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तो फिर मिलेंगे जल्दी ही , एक और नई कहानी के साथ